बजट 2024: ये 5 वित्त मंत्री जिन्होंने अपने बजट से भारत की आर्थिक तस्वीर ही बदल दी!
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कल नरेंद्र मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का पहला बजट पेश किया। इस बजट में कई महत्वपूर्ण नीतिगत फैसले शामिल थे, जो देश के आर्थिक भविष्य की दिशा तय करेंगे। इतिहास में भी कई ऐसे बजट पेश हुए हैं जिन्होंने भारत की तरक्की की रफ्तार को तेज करने और करदाताओं को राहत देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आइए, इन ऐतिहासिक बजटों के बारे में विस्तार से जानते हैं।
Digital Samadhaan
7/24/20241 min read
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कल नरेंद्र मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का पहला बजट पेश किया। इस बजट में कई महत्वपूर्ण नीतिगत फैसले शामिल थे, जो देश के आर्थिक भविष्य की दिशा तय करेंगे। इतिहास में भी कई ऐसे बजट पेश हुए हैं जिन्होंने भारत की तरक्की की रफ्तार को तेज करने और करदाताओं को राहत देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आइए, इन ऐतिहासिक बजटों के बारे में विस्तार से जानते हैं।
HIGHLIGHTS
1991 में मनमोहन सिंह का बजट: इस बजट ने भारतीय अर्थव्यवस्था का उदारीकरण किया, जिससे आर्थिक सुधारों की शुरुआत हुई।
1997 में पी चिदंबरम का बजट: एक्सपर्ट्स ने इस बजट को 'ड्रीम बजट' करार दिया, क्योंकि इसने कर संरचना में महत्वपूर्ण बदलाव किए।
2001 में यशवंत सिन्हा का बजट: इस बजट ने डिजिटल क्रांति की रूपरेखा तैयार की, जिससे देश में आईटी और टेलीकॉम सेक्टर में तेजी आई।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कल, 23 जुलाई को मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का पहला बजट पेश किया। इस बजट से आम जनता से लेकर उद्योग जगत तक को बड़ी उम्मीदें थीं। भारत में बजट की समृद्ध परंपरा रही है। भारत का पहला बजट साल 1860 में स्कॉटिश अर्थशास्त्री जेम्स विल्सन ने पेश किया था।
आजादी के बाद, आर.के. शनमुखम चेट्टी पहले वित्त मंत्री बने और उन्होंने 26 नवंबर 1947 को स्वतंत्र भारत का पहला केंद्रीय बजट पेश किया। उसके बाद से देश में 70 से अधिक केंद्रीय बजट पेश हो चुके हैं। आइए, इनमें से पांच ऐसे बजट के बारे में जानते हैं, जो भारत के आर्थिक इतिहास में मील का पत्थर साबित हुए:
1991-92 में हुआ अर्थव्यवस्था का उदारीकरण: एक ऐतिहासिक बदलाव
अगर किसी बजट ने आधुनिक भारत की तकदीर तय की, तो वह है 1991 का केंद्रीय बजट। उस समय देश गंभीर वित्तीय संकट से जूझ रहा था और एक तरह से दिवालिया होने की कगार पर खड़ा था। तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने बतौर अर्थशास्त्री अपनी काबिलियत का इस्तेमाल करते हुए देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण सुधार किए।
मनमोहन सिंह के बजट ने कस्टम ड्यूटी, यानी विदेश से आने वाले सामानों पर टैक्स, को 220 फीसदी से घटाकर 150 फीसदी कर दिया। इससे भारतीय व्यापार वैश्विक स्तर पर अधिक प्रतिस्पर्धी हो गया। उन्होंने उदारीकरण की भी शुरुआत की, जिसमें व्यापार में सरकार का दखल कम करके आर्थिक आजादी को बढ़ावा दिया गया।
यह बजट भारत के आर्थिक इतिहास में मील का पत्थर साबित हुआ। इसने बहुचर्चित 'लाइसेंस राज' को खत्म करके दुनियाभर में भारत की छवि को बेहतर किया। लाइसेंस राज से मतलब ऐसी व्यवस्था से था कि किसी भी कारोबार को शुरू करने के लिए सरकार से परमिट या लाइसेंस लेना पड़ता था। इसमें काफी वक्त लगता था और नौकरशाही की मनमानी भी खूब चलती थी।
मनमोहन सिंह के बजट ने भारतीय अर्थव्यवस्था में दुनिया का भरोसा बहाल किया और विदेशी निवेश को आकर्षित किया। इससे भारत के आर्थिक शक्ति बनने का रास्ता भी तैयार हुआ।
यह बजट भारतीय अर्थव्यवस्था को सुधारने का एक साहसिक कदम था, जिसने न केवल देश को वित्तीय संकट से बाहर निकाला बल्कि एक नई आर्थिक नीति की नींव भी रखी। इस उदारीकरण ने भारतीय उद्योगों को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया और देश को वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में मजबूती से स्थापित किया।
1997-98 में चिदंबरम लाए 'ड्रीम बजट': करदाताओं को मिली बड़ी राहत
1997-98 के बजट को 'ड्रीम बजट' कहा जाता है, जिसे तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने पेश किया था। पी चिदंबरम ने 1991 की नरसिम्हा राव सरकार में वित्त मंत्री मनमोहन सिंह के मार्गदर्शन में काम किया था, और उन्होंने अपनी आर्थिक और वित्तीय कुशलता का परिचय 1997 का बजट पेश करते वक्त दिया।
इस बजट में पर्सनल इनकम टैक्स और कॉरपोरेट टैक्स में भारी कमी की गई। सबसे अधिक पर्सनल इनकम टैक्स रेट को 40 फीसदी से घटाकर 30 फीसदी कर दिया गया। इस बदलाव से करदाताओं को बड़ी राहत मिली और इसे भारतीय इतिहास के सबसे उल्लेखनीय बजट में से एक माना गया।
'ड्रीम बजट' के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा मिली। इससे न केवल करदाताओं को लाभ हुआ, बल्कि निवेश के लिए भी बेहतर माहौल बना। यह बजट भारतीय आर्थिक सुधारों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ, जिसने देश के वित्तीय और आर्थिक ढांचे को मजबूत किया।
इस बजट ने भारतीय अर्थव्यवस्था में आत्मविश्वास को बढ़ाया और कराधान प्रणाली को अधिक सरल और पारदर्शी बनाया। पी चिदंबरम के इस साहसिक कदम ने भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए नए अवसरों के द्वार खोले और इसे तेजी से आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।
2000-01 में यशवंत सिन्हा का लैंडमार्क बजट: डिजिटल क्रांति की नींव
अटल बिहारी वाजपेयी की अगुआई वाली सरकार में यशवंत सिन्हा ने 2000-01 का बजट पेश किया, जिसे एक लैंडमार्क बजट के रूप में जाना जाता है। इस बजट ने विशेष रूप से आईटी सेक्टर के लिए क्रांतिकारी बदलावों की शुरुआत की और डिजिटल क्रांति की रूपरेखा तैयार की।
यशवंत सिन्हा के इस बजट में कंप्यूटर समेत 21 आइटम्स पर कस्टम ड्यूटी घटाई गई। इस कदम से देश की आईटी इंडस्ट्री में बूम आया और भारत तेजी से आईटी ग्रोथ का हब बन गया। कस्टम ड्यूटी में कमी से आईटी उत्पादों की लागत कम हुई, जिससे उद्योगों को नई तकनीकों को अपनाने में आसानी हुई और प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त मिली।
इस बजट ने न केवल आईटी सेक्टर को सशक्त बनाया, बल्कि रोजगार के नए अवसर भी पैदा किए। देशभर में नए आईटी पार्क और कंपनियों का उदय हुआ, जिससे भारत को वैश्विक स्तर पर आईटी सेवाओं का प्रमुख प्रदाता बनने का मौका मिला।
यशवंत सिन्हा का 2000-01 का बजट भारतीय अर्थव्यवस्था के डिजिटल युग में प्रवेश करने का महत्वपूर्ण कदम था। इसने न केवल तकनीकी क्षेत्र में भारत की क्षमताओं को बढ़ाया, बल्कि देश की समग्र आर्थिक प्रगति में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
2016-17 में अरुण जेटली ने आम और रेलवे बजट किया मर्ज: 92 साल की परंपरा का अंत
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली सरकार के पहले कार्यकाल में वित्त मंत्री का जिम्मा दिवंगत अरुण जेटली के पास था। उन्होंने ऐतिहासिक बदलाव करते हुए आम बजट और रेलवे बजट को मर्ज कर दिया। यह 92 साल की पुरानी परंपरा का अंत था। अरुण जेटली ने दोनों बजट को मर्ज करके एक सुव्यवस्थित बजट पेश किया। उसके बाद से रेलवे बजट अलग से नहीं पेश किया गया, जिससे बजट प्रक्रिया को सरल और अधिक समग्र बनाया जा सका।
2019-20 में निर्मला सीतारमण ने कॉरपोरेट जगत को दी बड़ी राहत
मौजूदा वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपना पहला बजट 5 जुलाई 2019 को पेश किया था। उनका पहला बड़ा आर्थिक सुधार कॉरपोरेट टैक्स को 30 फीसदी से घटाकर 22 फीसदी करना था। दरअसल, अर्थव्यवस्था को नोटबंदी और जीएसटी लागू होने से बड़ा झटका लगा था। कॉरपोरेट टैक्स घटाने से उद्योग जगत को उबरने में काफी मदद मिली।
सीतारमण को कोरोना महामारी के दौरान COVID-19 इकोनॉमिक रिस्पॉन्स टास्क फोर्स का प्रभारी भी बनाया गया। कोरोना काल में आर्थिक मुश्किलों को दूर करने के लिए देश के जीडीपी के करीब 10 फीसदी के बराबर 20 लाख करोड़ रुपये के विशेष आर्थिक पैकेज का भी एलान किया। इस पैकेज का उद्देश्य देश की अर्थव्यवस्था को महामारी से हुए नुकसान से उबारना और आर्थिक गतिविधियों को पुनर्जीवित करना था।
इन दोनों घटनाओं ने भारतीय आर्थिक नीति में महत्वपूर्ण मोड़ दिए। अरुण जेटली का बजट मर्ज करने का निर्णय बजट प्रक्रिया को अधिक समेकित और प्रभावी बनाने में मददगार रहा, जबकि निर्मला सीतारमण के कॉरपोरेट टैक्स कटौती और COVID-19 आर्थिक पैकेज ने उद्योग जगत को राहत देने और महामारी के प्रभावों को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
Digital Samadhaan
70 Saraswati Enclave Najafgarh Pincode-110043
Contacts
Support@digitalsamadhaan.com
+917053494589